135 साल पहले हुआ था कांग्रेस पार्टी का गठन,_28 दिसंबर सन 1885 में सर ए ओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की हम एक उदारवादी ईसाई थे वह सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य सेवा से निवृत्त हो चुके थे उनके मन में लार्ड मैकाले की भाती यही भावना कार्य कर रही थी कि जब हिंदुस्तानियों को किसी प्रकार यूरोपियन अचार्य विचार और व्यवहार सिखाया जाए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन 28 दिसंबर को ग्वालिया टैंक स्थित गोकुल दास तेजपाल संस्कृत कॉलेज मुंबई में ब्यूमेशचंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ इसमें कांग्रेस के 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था कांग्रेस की स्थापना भारतीय समाज में आचार विचार और व्यवहार में सुधार करने के लिए परंतु इस आंदोलन को कांग्रेस के माध्यम से अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों के हाथों में नेतृत्व सौपना चाहते थे जो यूरोप में शिक्षा पाए हो सरकारी नौकरी में रिटायर होने के बाद चले गए और वहीं उन्होंने अपनी ऑफ सिक्रेटरी एसएलकेई समक्ष रखी और उनका आशीर्वाद लेकर इंग्लैंड से भारत लौटे भारत लौटने के पश्चात उन्होंने अपना प्राण तत्कालीन वायसराय के समक्ष रखा जो उससे सहमत नहीं हुआ वायसराय चाहते थे हिंदुस्तान में एक संस्था राजनीतिक होनी चाहिए जिसमें केवल अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग ही हो वे इस संस्था के द्वारा राजनीति उन लोगो के हाथ में देना चाहते थे जो यूरोपीय को विचार को प्रसन्न करते हैं वायसराय का एक उद्देश्य यह भी था अंग्रेजी पढ़े लिखे और यूरोप की सैर करके लौटे भारती अपने विचार किसी एक मंच पर रखते है उनके विचारों को जाना जा सके कांग्रेस की स्थापना के समय यह विषय रखा गया कि इसके सदस्य केवल अंग्रेजी बोलना पढ़ना लिखना जानते हो इस प्रकार 1885 से 1907 तक कांग्रेस का जमावड़ा भर रही इसमें अंग्रेजी शासन भक्ति ही मेंबर थे वे लोग अंग्रेजों का राज सदैव भारत में चाहते थे क्योंकि उन्हें अपनी निजी उन्नत का मार्ग सरकारी नौकरी में ही दिखाई देता था लगभग इस समय गुजरात की मिट्टी से स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म बचपन का नाम मूल शंकर 12 फरवरी 1824 मोरबी रियासत के टंकारा गांव में हुआ था उन्होंने मथुरा के स्वामी प्रजानंद सस्ती से ज्ञानार्जन किया गया दयानंद जी संस्कृत और वेदों के ज्ञाता थे उन्होंने आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 में मुंबई के मनिकचंद्र के बगीचे में की थी जहां एक और कांग्रेस अंग्रेजो को मानने वाले सदस्यों का जमावड़ा भारती जो अंग्रेजी भाषा जानते थे और बोलते थे और लिखते थे कांग्रेस सदस्य अंग्रेज राज के भक्त थे और हमेशा अंग्रेज के अधीन रहने में अपने भारत का भविष्य समझते थे वहीं दूसरी ओर स्वामी दयानंद सरस्वती का आर्य समाज राष्ट्रभाषा हिंदी की बात करता वेदों की तथा संस्कृत की पढ़ाई की स्वामी दयानंद स्वराज से ही देश की उन्नत मानते थे भारतीय आचार्यकर और भारती वेश भूषा को प्रोत्साहन देते थे इन्हीं विचारों में से एक नई विचार धारा का जन्म हुआ़ जो अंग्रेजो के विरुध् युवा पीढ़ी का हृदय जग और युवा तथा बाल प्रांत कार्य ने हर प्रकार से भारत माता को कलम से मुक्त करने के लिए फांसी के फंदे लगने लगे तथा अंग्रेजों के घर घुसकर मारने लगे भारत में भी और लंदन में भी तथा अंग्रेजों को डर सताया अब भारतीय क्रांतिकारी जिंदा नहीं छोड़ेंगे इससे डरकर भारत छोड़ने को तैयार हो गए और भारत को छोड़कर चले गए लेखक गोकरन प्रसाद ब्यूरो चीफ भारत वन न्यूज़ चैनल सीतापुर मोबाइल नंबर 7518654968
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