लेखक
गोकरन प्रसाद
व्यूरो चीफ सीतापुर मोबाइल नंबर 7518654968
श्रावण मास और भगवान शिव का महत्व
श्रावण का महीना भगवान शिव को समर्पित है यह एक पवित्र महीना है जिसे सावन भी कहा जाता है यह महीना हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और भक्त उनकी कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं श्रावण मास भगवान शिव का अत्यंत प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था जिसमें हलाहल विष निकला था भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा करने हेतु उस विष को ग्रहण किया जिससे उनका नाम नील कंठ पड़ गया था इस उन्हें भगवान नीलकंठ महादेव भी कहा जाता है कहते हैं माता पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए श्रावण मास में कठोर तपस्या की थी श्रावण मास में सोमवार का व्रत रखने का बड़ा महत्व है इस महीने में भगवान शिव को जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व है जिससे विष का प्रभाव शान्त हो जाता है ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा अर्चना और ब्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है श्रावण मास चातुर्मास का एक भाग है जो विष्णु भगवान के शयन काल का समय होता है श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का भी विशेष महत्व है जिसमें भक्त गंगा जल भरकर शिव मन्दिरों में जलाभिषेक करते हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण का महत्व समुद्र मंथन से जुड़ा है समुद्र मंथन भी श्रावण मास में हुआ था उसी में से हलाहल विष निकला था सृष्टि को बचाने के लिए घातक हलाहल विष का पान किया था उनकी पत्नी देवी पार्वती ने विष को पेट तक पहुने, से रोकने,उनका गला दबाया था,।इस माह में कनखल में शिव जी कनखल में दक्षेश्वर महादेव महादेव के रूप में विराजमान रहते हैं इसके बाद पार्वती ने दूसरा जन्म माता सती के रूप में लिया उन्होंने महादेव को पति रूप में पाने के लिए सावन के महीने में कठोर तपस्या की थी।उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। शिव जी के भक्तों के लिए सावन के सोमवार के ब्रतो का बहुत ज्यादा महत्व है। सभी लोग माता पार्वती और भगवान शिव के लिए व्रतों का भी बहुत ज्यादा महत्व है इस दिन पूजा के साथ साथ शिव लिंग पर जलाभिषेक भी करते हैं।दूध बेल पत्र और गंगा जल अर्पित करते हैं । इस पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा का विषेश महत्त्व होता है इस पवित्र यात्रा में करोड़ों शिव भक्त शामिल होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साधक कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए पवित्र नदियों का जल भरकर लाते हैं श्रावण मास हिन्दू कलेंडर के अनुसार पांचवां महीना है और इसे भगवान शिव की पूजा के लिए एक पवित्र महीना माना जाता है यह महीना वर्षा ऋतु में आता है।
और इसमें भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनका प्रसाद पाने के लिए मनाया जाता है श्रावण मास का नाम श्रवण नक्षत्र के नाम पर पड़ा है।जो पूर्णिमा के दिन दिखाई देता है श्रावण मास का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों है यह महीना भगवान शिव की भक्ति और शिव पार्वती विवाह और समुद्र मंथन जैसे पौराणिक कथाओं से जुड़ा है हिन्दू धर्म में भगवान शिव का विषेश महत्त्व है इस महीने में कयी धार्मिक अनुष्ठान जैसे जलाभिषेक रुद्राभिषेक और शिव मंत्रों का जाप किया जाता है श्रावण मास में वर्षा ऋतु होती है जिससे चारों ओर हरियाली छा जाती है और मौसम सुहावना हो जाता है यह महीना माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का भी प्रतीक है जिन्होंने श्रावण मास में कठोर तपस्या करके शिव को प्रसन्न किया था श्रावण को देवाधिदेव भगवान महादेव का महीना भी कहा जाता है स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने सनत्कुमार से कहा मुझे सावन माह अतिप्रिय है भगवान शिव को निर्गुण ब्रह्म या परम सत्य का ध्यान करते हुए बताया गया है कुछ लोग यह मानते हैं भगवान शिव स्वयं का ध्यान करते हैं श्रावण वर्षा ऋतु वर्षाकालिक पावन शिव मास श्रावण मास में भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की पूजा भी विशेष रूप से की जाती है ऐसी मान्यता है कि हरा रंग देवी पार्वती को अत्यंत प्रिय है इसलिए स्त्रियां हरे रंग की चूड़ियां पहन कर देवी पार्वती को प्रसन्न करने का प्रयास करती है ताकि उन्हें अखण्ड सौभाग्य वती का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। श्रावण मास में भगवान शिव पृथ्वी पर वास करते हैं ऐसी मान्यता है श्रावण मास के अधिष्ठाता देवता भगवान शिव हैं इस महीने में प्रत्येक सोमवार को सभी मंदिरों पर श्रावण सोमवार के रूप में मनाया जाता है कहते हैं कि भगवान शिव पृथ्वी लोक पर अपनी ससुराल सावन के महीने में ही आए जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ था।
ऐसा कहा जाता है हर साल भगवान शिव श्रावण मास में पृथ्वी लोक पर आते हैं और सभी को अपना आशीर्वाद देते हैं।
सभी सनातनी हिन्दू समाज के लोगों से अनुरोध है कि वे लोग श्रावण मास भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है। भगवान शिव जिन्हें महादेव, शंकर, भोलेनाथ,के नाम से भी जाना जाता है हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है वे शैव धर्म के मुख्य देवता हैं और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, और महेश) में विनाशक देवता माने जाते हैं शिव जी की महिमा अपार है उन्हें कयी रूपों में पूजा,जाता,है,। जैसे महाकाल,(समय,) नटराज (नृत्य) और अर्धनारीश्वर (आधा पुरुष आधा महिला)
शिव को विनाश का देवता माना जाता है लेकिन यह विनाश रचनात्मक भी है वे प्रलय के समय सृष्टि का संहार भी करते हैं और फिर से नई सृष्टि की रचना करते हैं शिव योग और ध्यान के देवता हैं माना जाता है कि वे हिमालय पर्वत पर निवास करते हैं योग तपस्या, और ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं शिव समुद्र मंथन के दौरान विष पान किया था जिससे वे नील कंठ कहलाये यह उनकी लोक कल्याण की भावना और विषमताओं को सहन करने की क्षमता को दर्शाता है शिव की पत्नी पार्वती है जो देवी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है उनका विवाह शिव के साथ हुआ था और शिव के साथ मिलकर सृष्टि में सहयोग करती हैं शिव को ज्ञान का दाता भी कहा जाता है उन्होंने पार्वती को मोक्ष के लिए अमरनाथ की गुफा में ज्ञान दिया था जो आज भी योग और मूल तंत्र में शामिल है शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है भोला या सरल वे अपने भक्तों की भक्ति से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं शिव की महिमा का वर्णन वेदों और पुराणों में मिलता है शिव की पूजा करने से मानसिक शान्ति शारीरिक स्वास्थ्य और अध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है वे ज्ञान का वेद है रामायण के प्रणेता है संगीत के स्वर है ध्यान के उत्स है उनमें नृत्य वास कात्म है जीवन को गति मिलती है वे प्रेमी ऋषिओं के गुरु हैं देवताओं के रक्षक है असुरों के सहायक है और मानवों के आदर्श है सभ्यता के उषाकाल में शिव और पार्वती विज्ञान के धरातल पर काल का चिन्तन करते हैं शिव सृष्टि के आरम्भ में इन पांच को मुक्त करते हैं और प्रलय के समय उन्हें वापस अपने भीतर ले लेते हैं और बीच, बीच में इन ऊर्जाओं को सृजन(सृष्टि) संरक्षण (स्थित) संहार (विनाश या परिवर्तन)छिपाव (तिरोभाव) और प्रकटीकरण (अनुग्रह)के उद्देश्यों के लिए उपयोग करते हैं।हम जिन पांच तत्वों धरती,आकाश,जल, वायु, अग्नि,को जानते हैं और उन्हें नियंत्रित करने वाले भगवान शिव हैं भगवान शिव आत्मस्वरुप का ध्यान करते हैं शिव एक महान योगी ध्यानी भी है और उनका ध्यान अपने भीतर की गहराई और ब्रम्हाडीय चेतना पर केन्द्रित है ऊं नमः शिवाय सबसे प्रसिद्ध मंत्र है जिसका अर्थ है भगवान शिव को नमन करना है ऊं नमो भगवते रुद्राय यह रुद्र (भगवान शिव का एक रूप )को समर्पित मंत्र जो दुखों और बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है ऊं त्र्यंबकं,यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् यह मंत्र भगवान शिव से मृत्यु से मुक्ति और अमरत्व का आशीर्वाद मांगता है
ऊं तत्पुरुषाय विध्महेमहादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्।यह शिव गायत्री मंत्र है सुख समृद्धि और शांति लाता है इस प्रकार के बहुत से मंत्र शिव को प्रसन्न करने के लिए होते हैं समय निकाल कर सभी सनातन प्रेमियों को भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु उपरोक्त मंत्रों का जाप करना चाहिए।
जिससे भगवान शिव प्रसन्न होंगे और कोई भी बाधा नजदीक नहीं आयेगी।
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गोकरन प्रसाद ब्यूरो चीफ सीतापुर मोबाइल नंबर 7518654968