Home Breaking news गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है गुरु पूर्णिमा अषाढ़

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है गुरु पूर्णिमा अषाढ़

लेखक
गोकरन प्रसाद
व्यूरो चीफ सीतापुर
गुरु पूर्णिमा पर विशेष
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है गुरु पूर्णिमा अषाढ़

के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है जो गुरुओं के सम्मान का पर्व है इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को दक्षिणा देते हैं उनका आभार व्यक्त करते हैं गुरु दक्षिणा गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक तरीका है गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था इनकी माता का नाम सत्यवती और पिता ऋषि पाराशर थे वेदव्यास का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था इस लिए गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा के रूप में भी मनाई जाती है वेदव्यास ने महाभारत जैसे ग्रन्थ और तथा वेदों तथा पुराणों की रचना की वेदव्यास को कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है क्योंकि इनका जन्म यमुना द्वीप में हुआ था और रंग काला होने से कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है कुछ लोग कृष्ण को अपना गुरु मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं गुरु दक्षिणा का अर्थ है गुरु को दी जाने वाली भेंट या उपहार जो शिष्य अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य सम्मान से अर्पित करता है भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु संदीपन को दक्षिणा में उनके मृत पुत्र को यमलोक से जीवित लाकर गुरु दक्षिणा,के, रुप में दिया ।धन या वस्तु या सेवा के रूप दी जाती है शास्त्रों में गुरु को भगवान के स्थान से ऊपर माना गया है क्योंकि गुरु ही ज्ञान और मार्गदर्शन देकर शिष्य को जीवन मार्ग पर आगे बढ़ने व भगवान को मिलाने में मदद करता है गुरु पूर्णिमा उसकी अध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है ऐसा कहा जाता है जब चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के आधीन अपनी शिक्षा पूरी की तो उन्होंने गुरु दक्षिणा के रूप में उन्हें स्वर्ण मुद्रा की एक बड़ी राशि देने की पेशकश की लेकिन चाणक्य ने यह कहते हुए उपहार लेने से इंकार कर दिया कि उनकी असली गुरु दक्षिणा यह होगी कि चन्द्रगुप्त अपने अर्जित ज्ञान का उपयोग भारत के लोगों की सेवा करने के लिए एक न्याय प्रिय शासक बने वेदों में गुरू को अध्यात्मिक बताया गया है गुरु को ज्ञान का प्रकाश माना जाता है जो अज्ञान से दूर कर प्रकाश प्रदान करता है महाभारत में अर्जुन और द्रोणाचार्य का गुरु और शिष्य का सम्बन्ध प्रसिद्ध है अर्जुन ने द्रोणाचार्य के कहने पर राजा द्रुपद को बन्दी बना कर द्रोणाचार्य के सामने पेश किया और गुरु दक्षिणा पूरी की इसी प्रकार एकलव्य ने जंगल द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसको गुरु मानकर, उन्होंने उसे शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया था लेकिन एकलव्य ने अथक परिश्रम और लगन से धनुर्विद्या अभ्यास करके धनुर्विद्या में पारंगत हुआ तब द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका दाएं हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में मांग लिया उसने सहर्ष अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ष में छः उत्सव मनाता है जिसमें गुरु पूर्णिमा, रक्षाबंधन, विजय दशमी, मकर संक्रांति, वर्ष प्रतिपदा, हिन्दू साम्राज्य दिवस, इनमें से गुरु पूर्णिमा एक है इसी दिन संघ के स्वयंसेवक दक्षिणा भी करते हैं गुरु दक्षिणा एक सामान्य परंपरा या प्रथा है शिष्य अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार कुछ धन गुरु को अर्पण करता है गुरु दक्षिणा की राशि का कोई निश्चित नियम नहीं है हिन्दुओं के लिए भगवध्ज,पवित्र रंग है और अनादि काल से हिन्दू संत और साधू भगवध्ज की पूजा करते हैं केसरिया साहस और वीरता और बलिदान का प्रतीक है भगवा पहन कर कयी क्रांतिकारियों ने मुगलों और अंग्रेजों से संघर्ष किया इस प्रकार वर्तमान समय में विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो भारत माता को विश्व गुरु बनाने का बीड़ा उठा चुका है और उसने ऐतिहासिक ध्वज भगवा ध्वज उगते हुए सूर्य की किरणें तथा अग्नि में हवन करने पर यही रंग अखण्ड भारत के मान चित्र प्रतीक भगवाध्वज को अपना गुरु माना है जो रामायण काल राम के रथ पर तथा महाभारत काल में श्रीकृष्ण के रथ पर लगा हुआ था और जिसे महाराणा प्रताप और लक्ष्मीबाई ने जिस ध्वज की रक्षा के अपने प्राण न्यौछावर कर दिए ऐसे परम पवित्र भगवध्ज को संघ के आद्य, सरसंघचालक परमपूज्य डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने गुरू के रूप में चुना उसी भगवध्ज को संघ का स्वयं सेवक वर्ष में एक दक्षिणा अर्पित करता है। समाज के सभी हिन्दुओं को दक्षिणा के रूप भगवध्ज की पूजा और समर्पण करना चाहिए।
लेखक
गोकरन प्रसाद ब्यूरो चीफ सीतापुर मोबाइल नंबर 7518654968

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