चमार जाति का असली इतिहास डॉक्टर विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार तुर्क आक्रमण कार्यों के पहले चवंरसेन राजा का शासन था चवरराजवंशकाशासन भारत के पश्चिमी भाग में था और उसके प्रतापी राजा चवरसेन थे इसलिए क्षत्रिय वंश के राज परिवार का वैवाहिक संबंध बप्पा रावल के साथ था चमार एक दलित समुदाय है जिसे आधुनिक भारत की सकारात्मक कार्यवाही प्रणाली के तहत अनुसूची जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है इसकी जनसंख्या लगभग दो करोड़ 80 लाख है मुख्य आबादी का 12% जाटों चमार समुदाय के उपजाति उत्तरी भारत में पाई जाती है 12वीं शताब्दी के विद्वान लेखक ने भारतीय इतिहास मैं वास्तविक भारतीय सभ्यता और संस्कृत सिद्धांत को समझना के एकमात्र इरादे से इस कृतिका निर्माण किया चमार वास्तव में क्षत्रिय वंश के लोग थे उस समय पश्चिम बंगाल में चवर वंश का राज्य हुआ करता था चमार लोग इच्छा वंश सूर्यवंशी क्षत्रिय से संबंध रखते थे गौतम बुद्ध चंद्रगुप्त और सम्राट अशोक भी इसी वंश से संबंध रखते थे राजा चावल सेन के शासनकाल में यह चमार वंश काफी ऊंचाइयों पर पहुंच चुका था मुगल शासन काल के पहले किसी भी ग्रंथ में चमार शब्द का नाम नहीं है कोई चमार कोई जात नहीं होती थी 16वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए भारत पर हमला किया तो उसने संत रविदास जी की काफी महिमा सुनी और उनके बहुत से अनुयाई करने के लिए तैयार रहते थे सिकंदर लोदी ने अपने फकीर सधना को संत रविदास के पास भेजा तो संत रविदास जी से सधना ने अपनी बात रखी संत रविदास जी से कहा कि तुम इस्लाम स्वीकार कर लो संत रविदास जी ने कहा कि हमारा तुम्हारा पहले बहस हो जाए उसके बाद इस्लाम स्वीकार कर लेंगे जब धर्म के बारे में बहस हुई तो सधना फकीर हार गया वह संत रविदास जी के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा और हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया और अपना नाम संत रामदास रख लिया वह संत रविदास जी के साथ हिंदू धर्म का प्रसार प्रचार करने लगा जब सिकंदर लोदी को पता चला की सधना हिंदू हो गया है तो उसने सिपाहियों को भेज कर संत रविदास जी को तथा सधना को जेल में डलवा दिया वहां संत रविदास जी को बेजती करने के लिए जूते बनाने का काम लिया और वहीं से चमार शब्द की उत्पत्ति हुई सिकंदर लोदी ने चमड़े का काम देकर संत रविदास जी को अपमानित करने के लिए चमार कहना शुरू कर दिया उसके बाद कई राज्यों के रविदास जी के अनुयायी ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी तो सिकंदर लोदी ने मजबूर होकर संत रविदास जी को जेल और संत रामदास जी को रिहा कर दिया 1489 से 1517 तक के शासनकाल में द हिस्ट्री आफ राजस्थान उदित राज उत्तर पश्चिम दिल्ली भारतीय सेवा की चमार रेजीमेंट को 1940 में भंग कर दिया गया था जो जाति आधारित कुछ रेजीमेंट भंग की गई थी उसमें जाति आधारित रेजीमेंटों की एक बड़ी संख्या बनी हुई है जिनमें राजपूत और जाट रेजीमेंट भी शामिल है चमार रेजीमेंट द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा गठित एक पैदल सी रेजीमेंट 1 मार्च 1943 को स्थापित किए गए थे रेजीमेंट की शुरुआत में 2008 में भारत में इन्फेंट्री ब्रिगेट को सोपा गया था 1946 में इस रेजीमेंट को भंग कर दिया गया था चमार रेजीमेंट को इसलिए भंग किया गया कि द्वितीय विश्व युद्ध में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय पार्टी के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया था 1944 के मध्य में कैप्टन मोहनलाल परिन वर्मा अभियान में भाग लेने को अपने-अपने बटालियन के साथ गए थे लेकिन वहां सुभाष चंद्र के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़े जाटव समाज की कुलदेवी हर हर सिद्ध माता मां पीतांबरा शीतला देवी माता कांगड़ा जीण माता राजेश्वरी मां काली माता मनसा देवी भक्त जनों सभी महादेवियों के कार्य अलग-अलग हैं कुलदेवी भद्रकाली व कुल देवता वीरभद्र व आराध्य देव भगवान शिव शंकर है। वर्तमान समय में चमार जाति लोगों को अपने-अपने गौरवशाली इतिहास का ज्ञान नहीं है या जानकारी नहीं है इसलिए वह अपने को तभी कुछ ले दिन ही महसूस कर रहे हैं उनको अपने गौरवशाली इतिहास का ज्ञान करके महापुरुषों के चिन्ह पर चलना चाहिए और समाज में ऊपर उठने के लिए बाबा भीमराव अंबेडकर से प्रेरणा लेकर कार्य करना चाहिए। चवर वंश के महापुरुष महात्मा बुद्ध सम्राट अशोक संत सेवमणि संत रविदास संत्रमदास बड़े-बड़े महापुरुष हुए हैं रिपोर्टर गोकरन प्रसाद ब्यूरो चीफ भारत वन न्यूज़ चैनल सीतापुर मोबाइल नंबर 7518654968







